Guru Pradosh Vrat Katha के बारे में जानिये

गुरु प्रदोष व्रत एक महत्वपूर्ण धार्मिक उपवास है जो शिव भक्तों द्वारा विशेष श्रद्धा और समर्पण के साथ मनाया जाता है। यह व्रत गुरुवार के दिन प्रदोष काल में किया जाता है, जो सायंकाल शिव पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।

व्रत का महत्व

प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है क्योंकि इसमें भक्त शिव जी की पूजा करके अपने जीवन में शांति, समृद्धि और कल्याण की कामना करते हैं। इस व्रत को करने से व्यक्ति के जीवन से सभी प्रकार के दुख और कष्ट दूर होते हैं।

व्रत विधि

इस व्रत में भक्तों को संध्या काल में शिवलिंग की पूजा करनी होती है। व्रतधारी व्यक्ति को उपवास रखना होता है और शाम को शिव मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करनी होती है। व्रत के दौरान उपवासी को शुद्ध विचारों और भक्ति भाव के साथ शिव जी का ध्यान करना चाहिए।

गुरु प्रदोष व्रत कथा

एक बार देवताओं और वृत्रासुर की सेनाओं में भयानक युद्ध हुआ। देवताओं ने दैत्य सेना को हराया और उसे नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। यह देखकर वृत्रासुर बहुत क्रोधित हो गया और खुद युद्ध करने लगा।

उसने आसुरी माया से विकराल रूप धारण किया। भयभीत होकर सभी देवता गुरु बृहस्पति की शरण में पहुंचे।वृहस्पति महाराज ने कहा कि वृत्रासुर का असली परिचय पहले देंगे।

वृत्रासुर बहुत तपस्वी और कर्मनिष्ठ है। उसने गन्धमादन पर्वत पर अत्यधिक तपस्या करके शिव को प्रसन्न किया। वह पहले चित्ररथ नाम का राजा था। एक बार वह कैलाश पर्वत चला गया।

वहां माता पार्वती को शिव के वाम अंग में विराजमान देखकर वह हँसकर बोला, हे प्रभो! हम मोह-माया में फंसे हुए हैं और स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं। लेकिन देवलोक में कभी कोई स्त्री आलिंगनबद्ध होकर बैठी हुई नहीं थी।

चित्ररथ की बात सुनकर सर्वव्यापी शिव शंकर हंसकर बोले, राजन! मेरा व्यावहारिक विचार अलग है। तुम आम लोगों की भांति मेरा मजाक उड़ाते हो, हालांकि मैंने मृत्युदाता कालकूट महाविष का पान किया है!

माता पार्वती क्रोधित होकर चित्ररथ से कहा, “तूने सर्वव्यापी देवता के साथ मेरा भी उपहास उड़ाया है।” तब मैं तुम्हें वह शिक्षा दूंगी कि फिर तुम ऐसे संतों के उपहास करने का साहस नहीं करेगा. अब तुम दैत्य बनकर विमान से नीचे गिर जाओ, मैं तुम्हें शाप देती हूँ।

चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हो गया जगदम्बा भवानी के अभिशाप से और त्वष्टा नामक एक ऋषि के श्रेष्ठ तप से वृत्रासुर बन गया।

गुरुदेव बृहस्पति ने कहा कि वृत्तासुर बचपन से शिव का भक्त था। हे इन्द्र, बृहस्पति प्रदोष व्रत करके भगवान शंकर को खुश करो। देवराज ने गुरुदेव का आदेश मानकर बृहस्पति प्रदोष व्रत किया। गुरु प्रदोष व्रत की कृपा से इंद्र ने वृत्रासुर को तुरंत हराया, जिससे देवलोक में सुख-शांति छा गई।

व्रत के लाभ

श्री सूतजी ने कहा कि गुरुप्रदोष व्रत सबसे अच्छा है, शत्रु विनाशक भक्ति प्रिय है, इसलिए इसे शत्रुओं का विनाश करने वाला भी माना जाता है और सभी प्रकार के कष्ट और पापों को नष्ट करने वाला भी माना जाता है। गुरु प्रदोष की कथा पढ़ने या सुनने से विजय और ऐश्वर्य का शुभ वरदान मिलता है।

इस प्रकार गुरु प्रदोष व्रत एक पवित्र और शक्तिशाली व्रत है जो भक्तों के जीवन में आनंद, समृद्धि और कल्याण लाता है। इसे श्रद्धा और समर्पण के साथ किया जाता है।

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